Sonia Jadhav

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वार्षिक प्रतियोगिता- लेख- शिक्षा या व्यापार

शिक्षा या व्यापार

हर जगह व्यापार ही तो चल रहा है, चाहे फिर वो मेडिकल का क्षेत्र हो, या फिर शिक्षा का। वैसे ज्यादा दूर क्यों जाएं, आप अपने रिश्तों में ही देखिए न, क्या वहाँ कम व्यापार चलता है।

आपको पता है व्यापार कैसे चलता है, लेन- देन से। आजकल के सभी माता पिता जो अपने आपको आधुनिक कहलवाते हैं, उन्हें स्कूल में एसी क्लासरूम और बसों से लेकर एसी कैंटीन तक चाहिए बच्चों के लिए, साथ ही तरह-तरह की एक्टिविटीज भी। 

अब इन्हीं सब सुविधाओं को मुहैया करवाने के लिए मैनेजमेंट को आलिशान स्कूल का निर्माण करता है, सारी सुख सुविधाएँ मुहैया करवाता है और प्रतिभाशाली, कॉनवेंट स्कूलों से पढ़े हुए शिक्षकों की नियुक्ति करता है। इन्हीं सब सुविधाओं के एवज में ज़्यादा फीस ऐंठता है। स्कूल से ही यूनिफार्म, किताबें और जूते मिलते हैं, जो स्कूल से लेना ही अनिवार्य होता है। जाहिर सी बात है, इसमें भी पैसों का हेरफेर होता है। लेकिन उच्च वर्ग के लोगों को इससे ज्यादा समस्या नहीं होती, मध्यमवर्गीय लोगों के मुकाबले।

ऐसा नहीं है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती या वहाँ के शिक्षकों को पढ़ाना नहीं आता। जिस बच्चे में वाकई में पढ़ने की चाह है, जिसकी आँखों में कुछ बड़ा करने का सपना है, वो बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़कर भी अपने सपने को पूरा कर ही लेता है।

रही बात कोचिंग सेंटर्स की तो, आजकल कोचिंग लेना अनिवार्य सा हो गया है हर विषय के लिए। अगर बच्चा सही तरह से क्लास में ध्यान दे और घर में अच्छे से अभ्यास करें तो शायद छोटी क्लासेज के लिए कोचिंग की जरूरत पड़े ही नहीं।

आजकल नर्सरी, केजी तक के बच्चे ट्यूशन पढ़ने जाते हैं क्योंकि माता पिता के पास समय नहीं है पढ़ाने के लिए।

आजकल के समय में हर कोई चाहता है कि उनका बच्चा क्लास में फर्स्ट ही आये जो कि सम्भव नहीं है। माँ बाप अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बच्चों को ट्यूशन सेंटर भेज देते हैं।
ये ट्यूशन सेंटर, कोचिंग सेंटर इसलिए फलफूल रहे हैं, क्योंकि हमारे पास समय नहीं है अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए।

हाँ, यह जरूर है कि आधे से ज्यादा स्कूल मनमानी फीस वसूल रहे हैं अभिभावकों से, लेकिन स्कूल्स जितनी भी फीस वसूल ले, उसका बहुत कम प्रतिशत मिलता है टीचर्स को। लेकिन शिक्षा को व्यापार में तब्दील करने का दोष मड़ा जाता है शिक्षकों पर। 

आजकल की महंगाई के युग में पेट तो सभी को अपना भरना है तो गाज शिक्षकों पर ही क्यों?

अगर शिक्षक जबरदस्ती बच्चे को ट्यूशन लगाने के लिए बाध्य करते हैं या ट्यूशन में नहीं आने के लिए फ़ेल करने की धमकी देते हैं तो यह सरासर गलत है। बच्चों के दाखिले के समय जो मनमानी डोनेशन ली जाती है, मैं उसके सख्त खिलाफ हूँ।

कई बार अभिभावक खुद ही आकर टीचर से बोलते हैं.... मैडम क्या आप अलग से मेरे बच्चे को पढ़ा सकती हैं अपने घर पर?
शिक्षा को व्यापार बनाने वाली स्कूल की मैनेजमेंट है, टीचर्स नहीं।

ग्रामीण इलाकों में हो सकता है टीचर्स मनमानी करते हों, लेकिन शहरों में तो अभिभावकों की मनमानी चलते हुए ज्यादा देखा है। टीचर खुद से कोई भी नियम नहीं बनाती स्कूल में, सब कुछ प्रिंसिपल और मैनेजमेंट के निर्देशानुसार होता है।

अंत में यही कहूँगी कि आजकल के इस डिजिटल युग में जब रिश्ते तक व्यापार बन चुके हैं तो फिर शिक्षा या मेडिकल से जुड़े क्षेत्रों की बात ही क्या है।

आजकल गरीब से गरीब व्यक्ति को पब्लिक स्कूल में पढ़ाने की इच्छा रखता है और जैसे तैसे पैसों का इंतज़ाम करके पढ़ाता भी है क्योंकि उसे लगता है सरकारी स्कूलों में पढ़ाई अच्छी नहीं होती। हर जगह कुछ अच्छे और बुरे लोग तो होते ही हैं लेकिन कुछ चुनिंदा बुरे लोगों के कारण पूरी व्यवस्था को बुरा ठहरा देना उचित नहीं है।

महँगे स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना आजकल किसी स्टेटस सिम्बल से कम नहीं है। कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं शिक्षा को व्यापार में तब्दील करने के लिए।

❤सोनिया जाधव

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1 Comments

Seema Priyadarshini sahay

02-Mar-2022 04:44 PM

बहुत सही है

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